★ अपेंडिक्स आँत का एक टुकड़ा है। इसे डॉक्टरी भाषा में एपिन्डिसाइटिस कहते हैं|
★ चूँकि हमारे पेट में कई अंग होते हैं, इन अंगों की अनेक बीमारियों में पेटदर्द, बुखार, उल्टी आदि लक्षण समान ही होते हैं। साथ ही पेट के अनेक अंगों व दूसरे रोगों के भौतिक परीक्षण और पूर्व इतिहास भी मिलते-जुलते होते हैं इसलिए अपेंडिक्स को सुनिश्चित करने की समस्या प्रायः बनी ही रहती है।
★ Appendix ka operation -पूरी तरह परीक्षण किए बगैर मामूली से या अन्य किसी कारण से होने वाले पेटदर्द के निदान के लिए इस अवशेषी अंग को निकाल फेंकना गलत है।
★ आंत्रपुच्छ यानी अपेंडिक्स की चिकित्सा आयुर्वेद में औषधी द्वारा की जा सकती है। आइये जाने की आखिर appendix hone ke karan क्या है |
?️अपेंडिक्स का कारण :
★ लंबे समय तक लगातार कब्ज रहना |
★ पेट में पलने वाला परजीवी तथा आंत के क्षयरोग आदि से अपेंडिक्स की नली में अवरोध हो जाता है।
★ ऐसे भोजन का सेवन करना जिसमें रेशा बहुत ही कम या बिल्कुल न हो, भी इस समस्या को निमंत्रण दे सकता है।
★ जब यह अवरोध कुछ दिनों तक लगातार बना रहता है तो अंततः संक्रमण होकर अपेंडिक्स के फटने की स्थिति आ जाती है। अपेन्डिक्स का फटना एक आपात स्थिति है।
?भोजन तथा परहेज :
★ अपेंडिक्स में पूरा आराम करना |
★ फलों का रस, पर्लवाली, मुंग और दूसरे तरल पदार्थ खायें।
★ रोटी न खायें |
★ खटाई, ज्यादा तेल से बने चटपटे मसालेदार चीजें न खायें।
??अपेंडिक्स का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :
?1. गुग्गुल : गुग्गुल लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम गुड़ के साथ खाने से फायदा होता है।
?2. सिनुआर : सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह-शाम लेने से आंतों का दर्द दूर होता है। साथ ही सिनुआर, करंज, नीम और धतूरे के पत्तों को एक साथ पीसकर हल्का गर्म-गर्म जहां दर्द हो वहां बांधने से लाभ होता है।
?3. नागदन्ती : नागदन्ती की जड़ की छाल 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम निर्गुण्डी (सिनुआर) और करंज के साथ लेने से आंतों के दर्द में लाभ होता है। यह आंत में तेज दर्द हो या बाहर से दर्द हो हर जगह प्रयोग किया जा सकता है। यह न्यूमोनिया, फेफड़े का दर्द, अंडकोष की सूजन, यकृत की सूजन तथा फोड़ा आदि में फायदेमंद है।
?4. रानीकूल (मुनियारा) : रानीकूल की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह-शाम लेने से लाभ होता है। इससे आंत से सम्बन्धी दूसरे रोगों में भी फायदा होता है। इसका पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती का चूर्ण) फेफड़े की जलन में भी फायदेमंद होता है।
?5. हुरहुर : पेट में जिस स्थान पर दर्द महसूस हो उस स्थान पर पीले फूलों वाली हुरहुर के सिर्फ पत्तों को पीसकर लेप करने से दर्द मिट जाता है।
?6. राई : पेट के निचले भाग में दायीं ओर राई पीसकर लेप करने से दर्द दूर होता है। मगर ध्यान रहे कि एक घंटे से ज्यादा देर तक लेप लगा नहीं रहना चाहिए। वरना छाले भी पड़ सकते हैं।
?7. पालक का साग : आंत से सम्बन्धित रोगों में पालक का साग खाना फायदेमंद है।
?8. चौलाई : चौलाई का साग लेकर पीस लें और उसका लेप करें। इससे शांति मिलेगी और पीड़ा दूर होगी।
?9. बड़ी लोणा : बड़ी लोणा का साग पीसकर आंत की सूजन वाले स्थान पर लेप लगायें या उसे बांधें। इससे दर्द कम होता है और सूजन दूर होती है।
?10. चांगेरी : चांगेरी के साग को पीसकर लेप बना लें और उसे पेट के दर्द वाले हिस्से में बांधें। इससे लाभ होगा।
?11. चूका साग : चूका साग सिर्फ खाने और दर्द वाले स्थान पर ऊपर से लेप करने व बांधने से ही बहुत लाभ होता है।
?12. बनतुलसी : बनतुलसी को पीसकर लुगदी बना लें किसी लोहे की करछुल पर गर्म करें (भूनना नहीं है) उस पर थोड़ा-सा नमक छिड़क दें और दर्द वाले स्थान पर इस लुगदी की टिकिया बनाकर 48 घंटे में 3 बार बदल कर बांधें। रोगी को इस अवधि में बिस्तर पर आराम करना चाहिए। इस चिकित्सा से 48 घंटे में रोग दूर हो जाता है। इसके पत्ते दर्द कम करते हैं। सूजन कम करते हैं। सूजन व दर्द वाले स्थान पर इसका लेप करने से फायदा होता है।
?13. गाजर : आंत्रपुच्छ प्रदाह में गाजर का रस पीना फायदेमंद है। काली गाजर सबसे ज्यादा फायदेमंद है।
?14. दूध : दूध को एक बार उबालकर ठंडा कर पीने से लाभ होता है।
?15. टमाटर : लाल टमाटर में सेंधानमक और अदरक डालकर भोजन के पहले खाने से फायदा होता है।
?16. इमली : इमली के बीजों का अन्दरूनी सफेद गर्भ (गिरी) को निकालकर पीस लें। बने लेप को मलने और लगाने से सूजन में और पेट फूलने में आराम आता है।
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